VANDANA

हमे जो भी दिया , दादी मैया ने दिया
हमेशा आपके हाथौ मे , सर झुका के लिया
मेरी ये जिन्दगी, मेरी मात की अमानत है,
बदल जो जाऊ हे दादी, तो मुझ पे लानत हॅ,
जहाँ मे दादी तुम्हारा, कोई जवाब नही,
दयालु ऎसी दया का, कोई हिसाब नही,
दयालु मात ने बिन बोले, हमारा काम किया
निभाया अब तक, आगे भी तुम निभा देना,
तेरी तोहीन है, किसी और से भिक्षा लेना,
हमैशा द्नार से ‘बनवारी’, झोली भर कर गया

वन्दना
मेहन्दी सुरंगी राचणी जी,
थारा हाथा में राणी सती माँ
मै वारी जावां दादी जी…
चाँदी की चौकी पर माँ, बैठी बैठी मुस्काये।
रुप सलोनी लागे हे, भक्त को हिवडो हरषाये ।
सोते री बिन्दिया साजी जी, थारे माथे पर राणि सती माँ ।
मै वारी जावां दादी जी…
रौली मौली गजरा सूँ , माँ ने खुब सजाई है,
सज्यो बोरले माथे पर, चुणडी लाल उडाई हे ,
छम-छम पायलिया बाजि जी, थारे पेरा मे राणी सती माँ ।।
मै वारी जावां दादी जी…
दादी के मुख मडंल पर तेज सवायो चमको हे ।
मूँगा की शोभा भारी, हीरा टम-टम टमके हे ।
मंगल शहणाई बाजी जी, थारे स्वागत मे राणी सती माँ ।
मै वारी जावां दादी जी…

अभिलाषा

सुखी बसे ससांर सब, दुखिया रहे न कोय ।
यह अभिलाषा भक्त की, दादी पूरी होय । ।
दूध पूत धनधान्य से, वंचित रहे न कोय ।
विद्या, बुद्धि तेज बल, सबके भीतर होय । ।
आपकी भक्ति प्रेम से, मन होवे भरपूर ।
राग द्धेष से चित मेरा, कोसो भागे दूर । ।
नारायणी तुम आप हो, पाप विमोचन हार ।
क्षमा करो अपराध सब, कर दो भव से पार । ।

श्री दादी रानी सतिये नमः । ।
सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनसय ह्वदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तु ते । ।
अर्थात बुद्धिरुप से सब लोगो के ह्लदय में विराजमान रहने वाली
तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवि तम्हे नमस्कार है ।

चन्द्र तपै सूरज तपै, उड्गण तपै आकाश ।
इन सबसे बढकर तपै, सतियौं का प्रकाश । ।
जय जय श्री रानी सती, सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान मै, प्रणवहुँ बारम्बार । ।

रूद्राष्टकम् ।।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेङहम् ||१||
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् |
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोङहम् ||२||
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् |
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३||
चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेङहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५||
कलातिकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनान्ददाता पुरारी |
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६||
न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् |
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७||
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोङहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् |
जरजन्मदुःखौ घतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||
रुद्रष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||

मधुराष्टकम् ।।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं .
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं .
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ .
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं .
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं स्मरणं मधुरं .
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
गुंजा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा .
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं .
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा .
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

|| श्री गणेशायनम: ||

विघ्न हरन मंगल करन, श्रीगणपति महाराज |
प्रथम याचना आपको, पूरण करियो काज | |
हे वेद माता सरस्वती, आप ज्ञान की खान,
नित्य ध्यान करते है,माँ सदा आपका |
श्री ब्रह्रमा विष्णु महेश, जिनकी कृपा से हो रहे सब कष्ट दूर,
इस जग के दुःख कलेश हरे, सभी कामना हो पूर्ण ||

माँ, ज्ञान बुधि तुच्छ है, नहीं वाणी में स्वर संवाद,
ध्यान कर माँ आपका, यह सब आपकी कृपा से लिख रहा |
आया में आपके भवन में, आपकी महिमा अपरम्पार,
कोई नहीं जान पाया आजतक, यदि हो रही कोई भूल |
क्षमा कर देना नादाँ समझ कर माँ , क्या मेरी ओकात,
चरण शरण की जो मिली सेवा, उसी में हर्ष सोभाग्य मनाता हूँ ||
यह सब दया दृष्टि हैं माँ आपकी,
जो यह सब लिख पाता हूँ, जो यह सब कर पाता हूँ||
जय जय जय श्री दादीजी महाराणी कल्याणी आप सब का कल्याण करे ||

अब सब भक्त जनों को, दादा दादी की महिमा सुनाता हूँ |

दादाजी ने जेठ माह अमावस, सम्वत 1102, शुक्रवार को गाँव लजवाना पिता श्री ईश्वर चन्द जिंदल एवं माता श्रीमति लक्ष्मी देवी जी के घर जन्म लिया, जो महाभारतकाल के महाराजा श्री पाण्डु जी के अवतारी थे ।
दादा-दादीजी ने कुल पुरोहितजी को बुलवा कर नामकरण करवाया, जिनका नाम गिरिधर प्रसाद निकला एवं भविष्य वाचन में कहा गया कि कुण्डली बहुत अच्छी हैं, राजयोग हैं और यह बच्चा कुल गोत्र का नाम अमर करेगा |

दादीजी ने चेत्र शुक्ल अष्टमी, सम्वत 1105, मंगलवार, को गाँव कथूरा पिता श्री भगीरथ जी गोयल एवं माता श्रीमति उमा जी के घर में जन्म लिया, जो महाभारतकाल की महाराणी श्रीमति कुन्ती जी की अवतारी थी ।

वहाँ भी दादा-दादीजी ने कुल पुरोहितजी को नामकरण के लिये बुलवा करवाया | पुरोहित श्री बनवारीलाल जी कन्या के नक्षत्र देखकर कहा की ये कन्या तो बदुत ही भाग्यशाली हैं मुख मंडल पर अद्भुत तेज हैं और महाराणी बनने का योग हैं एवं ये कन्या केवल गोयल कुल का ही नहीं बल्कि जिस भी कुल / गोत्र में जायेगी, ये दोनों कुलों का नाम अमर रोशन करेगी और कुल का कल्याण करने वाली भी होगी इसी वजह से कन्या का नाम कल्याणी देवी रखा गया |

दादा दादी के परिवारों के आगंन में एक किलकारी सी महकी थी |

दादीजी कल्याणी देवी का सात बरस की उम्र में लजवाना रियासत के जिन्दल कुल श्री ईश्वर चन्द जी जिंदल एवं माता श्रीमति लक्ष्मी देवी जी के घर उनके पुत्र गिरधारी प्रसाद जी जिन्दल के साथ विवाह तय किया गया |
विवाह का शुभ दिन कार्तिक शुक्ल तिर्योदशी, सम्वत 1112, शनिवार को गिरधारी संग कल्याणी का विवाह संपंन्न हुआ | और दोनों आपस में जन्मों- जन्मों के बंधन में बंध गये |

माता पिता के घर से दादीजी, दादाजी संग शुभ दिन भाद्रपद की दूज सम्वत 1118, रविवार को पहली बार ससुराल जिन्दल कुल के लिये अपने मायके कथुरा रियासत से हाथी की पालकी में सवार हो गाजे बाजे के साथ ससुराल लजवाना के लिये विदा हुये |

और दादाजी संग अपना घर बसाया | मात दादीजी को कुछ प्रतीक होने लगा की मेरा जन्मो जन्मो सें अधूरा, अब मुझे अपना पति धर्म निभाने का वो शुभ दिन आने वाला हैं अपने कुल का मान बढ़ाना हैं पियर कथूरा अपने मात पिता के घर कभी भी नहीं जाना हैं |

दिन भाद्रपद की पंचमी सम्वत 1118, बुधवार को दादाजी श्री गिरधारी प्रसाद जी की असामयिक निधन हुआ, दादीजी मात कल्याणी जी ने समझ लिया अब वह शुभ घडी आयी है जिसकी था मुझको जन्मो- जन्मो से इंतजार, आज मुझे अपने पति परमेश्वर के साथ ही स्वय के शरीर को भी चिता में त्यागना हैं मेरे सती होने का शुभ समय आया है |
द्वापर में न हो सकी थी सती में पांड्वो की माता कहलाती थी, पांडु पत्नी कुंती महारानी कहलाती थी | भगवान कृष्ण ने द्वापर में पांडु संग सती होने से रोका था | कहा था भगवान कृष्ण ने भुवा तुम्हे कलयुग में सती होना है | उस दिन से माँ दादी शक्ति में समाई है | महाराजा पांडु से मेरा जन्म जन्म का नाता था | अब जन्मो की इछा पूर्ण होने आई हैं |

इधर दादा जी के पार्थिव शरीर को अग्नि मुख किया जाना था, दादीजी ने उपस्थित सभी जनो को हाथ जोड़कर किया प्रणाम और पति गिरधारी जी की चिता को प्रणाम कर, सभी से हंस के बोली मेरा सती होने का समय आया है इतना कहकर ही माँ ने दादाजी को स्वय की गोद में बिठा लिया, और हाथ जोड़ प्रणाम कर कुलदेवी माँ का ध्यान लगाया, माँ अग्नि का आवहन किया, ऐसा करते की माँ ज्वाला जी ने दादी माँ के श्री चरणों को छुआ और देखते ही देखते दादीमाँ दादी जी के सग सेकिंडो में ही शक्ति में गई |
बोल सती मात की जय
जय जगदम्बा कल्याणी भवानी माँ, सदा कल्याण करो |
अपने बच्चो पर माँ सदा दया की मेहर बनाये रखो ||
हाथ जोड़ विनती करू, करू माँ नित तेरा ध्यानं |
में माँ तेरी शरण आ पड़ा, कर दो माँ परिवार का कल्याण ||
बोल सती मात की जय, बोल सती मात की जय, बोल सती मात की जय

पति को ही परमेश्वर मान, कर दिया निज देह का दान|
धन्य भवानी तेरी महिमा किसी ने न जानी ||
जिंदल कुल अब भी दादा दादी जी की महिमा जान नहीं पाया |
दादा दादी जी ने भी अपना रहस्य कभी किसी को नहीं बताया ||

घर आये सब अपने-अपने, किसी ने नहीं किया दादा दादी जी का ध्यान,
जलपान किया सभी ने, नहीं किया माँ का कोई गुणगान ||

यह करुण कहानी बहुत पुरानी है | दादी माँ की महिमा किसी ने नहीं जानी, जिंदल कुल ने भी खूब करी मनमानी हैं | माँ के सती होने से पूर्व जिंदल कुल में धन धान्य के भरे भंडार खूब इतने थे की ये अभिमानी, मुर्ख, अज्ञानी फिर क्यू किसी का ध्यान और गुणगान करे ?
अब 350 वर्षो के बाद माँ तुमने अपनी महिमा बखानी है धन्य भवानी, धन्य भवानी, धन्य भवानी

दादी माँ के सती होने के 350 वर्ष बाद जिंदल कुल में पुत्र/ धन्य धान की दिन प्रति दिन कमी होती जाने लगी | वक्त आने लगा, अब तक तो माँ रही जंगल में संतोष करके फिर न कहां किसी से, पर अब बता दिया हम नादान जिन्दलो को मेरी अपनी क्या कहानी है :

एक दिन एक बुजुर्ग माता बैठी बैठी कन्या के रूप में मीठी वाणी में मुस्कराकर बोली अब क्यों चिंता करते हो, तुम तो हो बड़े अभिमानी, तुम कहा किसी से डरते हो, इतना सुनने के बाद सब लोगो ने बुजुर्ग माता को हाथ जोड़ किया प्रणाम और बोले जाने अनजाने हमसे कौनसा नादान काम हुआ हैं जो भी गलती हमसे हुई हैं, उसके लिये हम सभी हाथ जोड़ कर क्षमा मांगते हैं, हम सब क्षमा प्राथी हैं क्षमा भवानी, क्षमा भवानी, जय जय क्षमा भवानी |
तब कन्या रूपी बुजुर्ग माता बोली तुम अपनी कुल सती का ध्यान करो यदि मिल जाये पुत्र पुत्रवधू तो, सम्मान गुणगान करो वो ही तुम्हारे कुल को आगे बढ़ाएगी / धन्य धान्य से भरपूर करेगी | इतना कहकर वो कन्या रूप, बुजुर्ग माता से अन्तरध्यान हो गया |
जय जगदम्बा भवानी, जय जगदम्बा भवानी, कल्याणी सदा कल्याण करो |
:: समस्त दादी महाराणी के वंशज ::